एक फेरे वाली दुल्हन

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“तू इतनी जल्दी कैसे हार मान जाता है? आज तू अपने दिल की बात कह दे जो अब तक दबी हुई है।”

“बहुत मुश्किल है, जैरी।”

“तुझे मेरी कसम है। कह दे अपने दिल की बात जो अब तक तेरे दिल में ही दफ़न है। तेरा मन भी हल्क़ा हो जाएगा और मुझे भी अपार खुशी मिलेगी।”

जातस्य चुप रहा। इनाक्षी बोली,”कह न? चुप क्यों है? जो बातें दबी रह जाती हैं वह इंसान को न जीने देती हैं और न मरने देती हैं। बुरा सपना बनकर पीछा करती हैं।”

वह फिर भी कुछ नहीं बोला पर इनाक्षी के ज़ोर-ज़बरदस्ती करने पर भावुक होते हुए वह बोला, “ऐसा कोई वक्त ही नहीं जब तू मेरे साथ नहीं होती। मेरी रगों में बहता खून है तू। मेरे दिमाग में उठता विचार है तू। मेरे दिल में धड़कने वाली धड़कन है तू। मेरे जिस्म की रूह है तू। मेरी आँखों की रोशनी है तू। मेरे जीने का मकसद है तू। सुबह जब जागता हूँ तो मेरे लिए सूरज की पहली किरण है तू। रात में सोता हूँ तो चाँद की चाँदनी है तू। मेरी बंजर सी ज़िंदगी में सावन है तू। ठंड में तपिश है तू। तपिश में शीतलता है तू। मुझ प्यासे के लिए झील का मीठा पानी है तू। मेरे दर्द का मरहम है तू। मेरे जीने-मरने का सुकून है तू। मैं तुझमें इतना खो चुका हूँ जैरी कि अब मेरा पूरा वजूद है तू।”

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